नई दिल्ली: हाल के दिनों में सरकारी कंपनियों के शेयरों में भारी तेजी देखने को मिली है। इससे लिस्टेड कंपनियों में शेयरों की वैल्यू के हिसाब से सरकार की हिस्सेदारी 31 मार्च तक के कुल बाजार पूंजीकरण का 10.38% पहुंच गई है। यह इसका सात साल के उच्च स्तर है। यह वैल्यू जून 2009 में लिस्टेड के कुल मार्केट कैप के 22% तक पहुंच गई थी। लेकिन सितंबर 2020 में यह 5.1% के निचले स्तर पर आ गई थी। इसके बाद से यह वैल्यू दोगुनी हो गई है। 31 मार्च को समाप्त तीन वर्षों में लिस्टेड सरकारी कंपनियों के मार्केट कैप में लगभग ₹43 लाख करोड़ की तेजी आई है। इसके साथ ही उनका मार्केट कैप ₹61.22 लाख करोड़ पहुंच गया। यह देश की सबसे वैल्यूएबल कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा है। रिलायंस का मार्केट कैप अभी 1,892,082.69 करोड़ रुपये है।
rimeinfobase.com के आंकड़ों में यह बात सामने आई है। इसके मुताबिक पिछले तीन साल में छह सरकारी कंपनियों की लिस्टिंग से सरकारी कंपनियों के मार्केट कैप में ₹6.4 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई। इस दौरान भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) और भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (IREDA) जैसी कंपनियों की लिस्टिंग हुई। निफ्टी पीएसई इंडेक्स और निफ्टी पीएसयू बैंक इंडेक्स में तीन साल में क्रमशः 326% और 493% की तेजी आई है जबकि निफ्टी ने 142% रिटर्न दिया है। एक्सिस एसेट मैनेजमेंट के सीआईओ आशीष गुप्ता ने कहा कि पीएसयू की रीरेटिंग की वजह है। कोविड-19 महामारी के दौरान इन कंपनियों के शेयरों में तेजी आई। सरकारी नीतियों और सुधारों से भी सरकारी कंपनियों को फायदा मिला है। साथ ही कॉरपोरेट गवर्नेंस पर फोकस, औपचारिक भुगतान नीतियों, सरकारी बैंकों की बैलेंस शीट की रिस्ट्रक्चरिंग, विनिवेश नीति और आकर्षक मूल्यांकन से पीएसयू शेयरों में तेजी आई।
प्राइवेट प्रमोटर्स की हिस्सेदारी
31 मार्च तक के आंकड़ों के मुताबिक निजी प्रमोटरों की हिस्सेदारी घटकर 5 साल के निचले स्तर 41% पर आ गई। पिछले 18 महीनों में ही इसमें 361 आधार अंक की गिरावट आई है। 30 सितंबर, 2022 को यह 44.61% थी। प्राइम डाटाबेस ग्रुप के प्रबंध निदेशक पृथ्वी हल्दिया ने बताया कि बाजार में तेजी के कारण प्रमोटर्स ने मुनाफावसूली की। साथ ही कुछ आईपीओ में प्रमोटर्स की हिस्सेदारी कम थी। वर्ष 2010 से 2019 के बीच पीएसयू शेयरों में भारी गिरावट देखी गई। सरकार द्वारा लगातार हिस्सेदारी की बिक्री और बड़े विदेशी फंडों द्वारा बिकवाली इसकी वजह रही। साथ ही पिछले साल कच्चे तेल की कीमत और ग्रॉस रिफाइनरी मार्जिन में भारी गिरावट के कारण ऑयल और गैस सेक्टर के पीएसयू की इनकम में बड़ी गिरावट आई।