‘धर्म लाभ हो’ यह ऐसा विशेष आशीर्वाद है जो विरले ही विलक्षण संत भक्तों को देते थे। एक दिन ऐसा ही आशीर्वाद पाकर एक भाग्यवान भक्त ने पूछ लिया, ‘महात्मा जी, आमतौर पर ऋषि-मुनि धनवान, दीर्घायु, समृद्ध और विजयी होने का आशीर्वाद देते हैं। आप धर्म का लाभ प्राप्त होने का आशीर्वाद क्यों देते हैं?
संत ने उसकी जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा, ‘ऊपर बताए जो आशीर्वाद तुम्हें अब तक मिलते रहे यह तो सामान्य आशीर्वाद हैं। लक्ष्मी और धन तो कृपण के पास भी बहुत हो सकता है। दीर्घायु भी बहुतों को मिल जाती है। संतान सुख ब्रह्मांड के सभी जीव भोगते हैं। मैंने तुम्हें जो धर्म-लाभ का अलौकिक आशीर्वाद दिया है उससे तुम्हें शाश्वत एवं वास्तविक सुख मिलेगा। धर्म-लाभ वह लाभ है जिसके अंदर दुख नहीं बसता। धर्म से जीवन शुभ ही शुभ बनता है। शुभता के अभाव में प्राप्त लाभ से गुणों में ह्रास और दुर्गुणों में वृद्धि होती है। अशुद्ध साधनों से अर्जित धन-लाभ आपको सुख के अतिरिक्त सब कुछ दे सकता है। उसमें आपको सुखों में भी दुःखी बनाने की शक्ति है।’
हम प्राय: धर्म लाभ और शुभ-लाभ को जानने का प्रयास नहीं करते हैं। शुभ अवसरों पर शुभ-लाभ लिखते अवश्य हैं, लेकिन लाभ अर्जित करते समय कभी इसका ध्यान नहीं रखते कि क्या इसकी प्राप्ति के साधन शुभ हैं? लाभ ऐसा हो जिससे किसी और को कलेश न हो, किसी को हानि न पहुंचे। लक्ष्मी वहीं निवास करती है जहां धर्म का निवास है और लक्ष्मी उसे कहते हैं जो शुभ साधनों से प्राप्त हो। सम्यक नीति से न्यायपूर्वक जो प्राप्त होती है वह वास्तविक संपदा है और बाकी सब विपदा। पैसा हमारे व्यक्तित्व में तभी सही चमक पैदा कर सकता है, जब हमारे मानवीय गुण बने रहें। अमेरिकी लेखक हेनरी मिलर का कथन है- मेरे पास पैसा नहीं है, कोई संसाधन नहीं है, कोई उम्मीद नहीं है, पर मैं सबसे खुशहाल जीवित व्यक्ति हूं।
नदी जब अपने स्वभाव में बहती है उसका जल निर्मल, पीने योग्य और स्वास्थ्यवर्धक होता है लेकिन जैसे ही उसमें बाढ़ आती है, वह तोड़फोड़ और विनाश का कारण बनती है। उसका निर्मल जल मलिन हो जाता है। वर्तमान में भी जो धन का आधिक्य है वह अशुभ-लाभ और अशुद्ध साधनों की बाढ़ से अर्जित लाभ ही है। यही कारण है कि इस तरह से प्राप्त की हुई संपदा विपदा ही सिद्ध हो रही है। वर्तमान की सारी अशांति और अस्त-व्यस्तता की जनक यही अनीति से अर्जित धन संपदा है। अमेरिकी विद्वान ओलिवर वेंडेल का कहना है कि आमतौर पर व्यक्ति अपने सिद्धांतों की अपेक्षा अपने धन के लिए अधिक परेशान रहता है।
विपदा ने संपदा का लिबास पहन रखा है। शुभ कहीं जाकर अशुभ की चकाचौंध में विलीन हो गया है। सभी कम करके ज्यादा पाने की होड़ में लगे हैं। सब ‘ईजी मनी’ की तलाश में हैं, ‘राइट मनी’ की खोज में कोई नहीं है। इसमें सुख पीछे छूटता जा रहा है। हमारी भलाई इसी में है कि लाभ-शुभ का प्रतिफल बनें और लाभ का सदुपयोग भी शुभ में हो। पैसों की अंधी लालसा में जब हम बेईमानी, चोरी और भ्रष्टाचार से पैसा कमाने लगते हैं, तो हम पैसे का घोर निरादर कर रहे होते हैं। जिंदगी बेहतर होती है जब हम खुश होते हैं लेकिन बेहतरीन तब होती है जब हमारी वजह से लोग खुश होते हैं।