कृष्णमोहन झा/
पश्चिम बंगाल के शिक्षक भर्ती घोटाले को लेकर रोजाना ही जो नए खुलासे हो रहे हैं वे आश्चर्य चकित करने वाले हैं। इस घोटाले के मुख्य आरोपी ममता सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री पार्थ चटर्जी को ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बावजूद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले यह कोशिश करती रहीं कि पार्थ चटर्जी को मंत्रिमंडल से हटाने की नौबत न आने पाए क्योंकि इससे उन्हें सरकार की छवि धूमिल होने का खतरा सता रहा था परंतु इसके लिए चौतरफा दबाव बढ़ने पर उन्हें आखिरकार इस घोटाले के मुख्य आरोपी पार्थ चटर्जी को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाना ही पड़ा । जाहिर सी बात है कि यह अप्रिय फैसला उन्होंने तब लिया जबकि इसके अलावा उनके सामने और कोई रास्ता नहीं बचा था. पार्थ चटर्जी को मंत्रिमंडल से हटाने के साथ ही पार्टी संगठन में भी सभी पदों से मुक्त कर दिया गया है। गौरतलब है कि ममता सरकार के वरिष्ठ मंत्री के रूप में पार्थ चटर्जी उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी और संसदीय कार्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। वे तृणमूल कांग्रेस के उन कद्दावर नेताओं में प्रमुख थे जिन पर ममता बनर्जी सबसे अधिक भरोसा करती थीं। यह निःसंदेह आश्चर्यजनक है कि ममता बनर्जी के इतने करीबी और विश्वास पात्र वरिष्ठ मंत्री के विभाग में इतना बड़ा घोटाला होता रहा और मुख्यमंत्री को उसकी भनक भी नहीं लगी। पार्थो चटर्जी अब यह कहकर खुद का दामन पाक-साफ बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें फंसाने की साज़िश की जा रही है लेकिन उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि यह साजिश कौन कर रहा है। उनका कहना है कि यह वक्त बताएगा। उधर ईडी की छापेमारी में उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी के चार आवासों से जो 55 करोड़ की धनराशि , आभूषण , डालर और चल अचल सम्पत्तियों के कागजात बरामद हुए हैं उनके बारे में अर्पिता मुखर्जी ने कहा है कि यह सब चीजें पार्थ चटर्जी की हैं। अर्पिता मुखर्जी यह तर्क दे रही हैं कि उनके घर से बरामद हुई भारी-भरकम नगद धनराशि से उनका कुछ लेना देना नहीं है,यह धनराशि तो पार्थ चटर्जी के लोग उनके घर में रखकर जाते थे और जिस कमरे में यह पैसा रखा जाता था उस कमरे में जाने की उन्हें सख्त मनाही थी। इस धनराशि का उन्होंने कभी उपयोग नहीं किया। अर्पिता मुखर्जी का यह हास्यास्पद तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा है। सवाल यह उठता है कि आखिर उन्होंने इतनी बड़ी धनराशि अपने घर में रखने क्यों दी और जब यह करोड़ों रुपए की धनराशि उनके घर रखी जा रही थी तो उन्होंने उसके बारे में कोई पूछताछ करना जरूरी क्यों नहीं समझा। ऐसे में यह शक स्वाभाविक है कि इस खेल में वे भी शामिल थीं और इसीलिए ईडी ने उन्हें भी गिरफ्तार किया है। इस संबंध में फिल्म अभिनेता और भाजपा नेता मिथुन चक्रवर्ती की यह प्रतिक्रिया निसंदेह गौर करने लायक है कि अर्पिता मुखर्जी के घर बरामद रुपए न तो पार्थ के हैं और न ही अर्पिता के। वे तो लूट के पैसों की रखवाली कर रहे थे। दोनों को सच बता देना चाहिए। इससे उनकी तकलीफ कम हो जाएगी। गौरतलब है कि मिथुन चक्रवर्ती अतीत में तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। मिथुन चक्रवर्ती की प्रतिक्रिया यह सोचने पर विवश करती है कि जब पूरे मामले की गहराई से जांच की जाएगी तो चौंकाने वाले खुलासे सामने आएंगे । पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी बचाव की मुद्रा में ला दिया है । लगभग सवा साल पहले संपन्न विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की प्रचंड विजय के बाद ममता बनर्जी जिस तरह आत्मविश्वास से भरी हुई दिखाई दे रही थीं वह आत्मविश्वास उनके अपने करीबी सहयोगियों की अनैतिक गतिविधियों में संलिप्तता के कारण डगमगाने लगा है। बहरहाल, वे अब अपने मंत्रिमंडल का पुनर्गठन करने की घोषणा कर चुकी हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता बनर्जी इस फेरबदल में कुछ मंत्रियों की छुट्टी भी कर सकती हैं और कुछ न ए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल कर सकती हैं। तृणमूल कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता सौगात राय ने पार्थ चटर्जी को मंत्रिमंडल से हटाने के ममता बनर्जी के फैसले को सही ठहराते हुए कहा है कि पार्थो चटर्जी ने पार्टी को शर्मसार किया है । उन्होंने जो कुछ किया उसकी जानकारी पार्टी में किसी को नहीं थी। पार्थ चटर्जी को उनके अपराध की सजा मिलनी चाहिए। सौगात राय के बयान से स्पष्ट है कि तृणमूल कांग्रेस सरकार की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहली प्राथमिकता अब पार्थ चटर्जी को उनके हाल पर छोड़ खुद को निष्कलंक साबित करना है। ममता बनर्जी ने पार्थ चटर्जी और अर्पिता मुखर्जी के यहां ईडी के छापे में करोड़ों रुपए मिलने और शिक्षक भर्ती घोटाले में उनकी कथित संलिप्तता के संदर्भ में कहा है कि मैं भ्रष्टाचार अथवा किसी गलत काम का समर्थन नहीं करती । जिसने गलती है उसे सजा मिलनी चाहिए लेकिन मेरे खिलाफ जो दुर्भावना पूर्ण अभियान चलाया जा रहा है मैं उसकी निंदा करती हूं। ममता बनर्जी का कहना है कि मैंने कभी निजी फायदे की राजनीति नहीं की । यह तो ममता बनर्जी के विरोधी भी मानते हैं परंतु सवाल यह उठता है कि जब ममता बनर्जी के करीबी लोग बड़े बड़े घोटाले करते रहते हैं तब ममता बनर्जी को भनक क्यों नहीं लग पाती और जब कोई मामला उजागर हो जाता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। सारदा घोटाले में भी ऐसा हो चुका है जिसमें तृणमूल कांग्रेस के ही कुछ बड़े नेता शामिल थे। ममता बनर्जी को यह तो याद ही होगा कि केवल तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ही अपितु उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी से भी ईडी और सीबीआई पूछताछ कर चुकी हैं। यदि ममता बनर्जी को ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी पार्टी और सरकार के मंत्रियों के विरुद्ध झूठे आरोप लगाकर उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की कोशिशें की जा रही हैं तब तो उन्हें अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के कार्यकलापों के प्रति और भी सतर्क रहना चाहिए था । गौरतलब है कि शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच कोलकाता हाईकोर्ट ने सीबीआई को सौंपी थी जिसे राज्य में सरकारी शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर हुए भ्रष्टाचार के सबूत मिले थे। मुख्यमंत्री आज यह कह रही हैं कि वे भ्रष्टाचार को प्रश्रय नहीं देतीं तो इस घोटाले के सामने आने के तत्काल बाद उन्हें पार्थ चटर्जी को मंत्रिमंडल से हटाने का फैसला करना चाहिए था। अगर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पार्थ चटर्जी को उसी समय मंत्रिमंडल से हटा देतीं तो उन पर आज यह आरोप नहीं लगता कि उन्होंने भ्रष्टाचार पर अंकुश पाने के लिए कोई कठोर कदम नहीं उठाया। अब समय आ गया है जबकि उन्हें अपने मंत्रिमंडल के उन सदस्यों को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए जिन पर अनैतिक गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप पिछले काफी समय से लगाए जा रहे हैं। दरअसल विपक्षी भारतीय जनता पार्टी को सरकार पर हमला बोलने का अवसर तो इसीलिए मिल पाया है क्योंकि वे राज्य में बढ़ते भ्रष्टाचार के मामलों को रोकने की पर्याप्त इच्छा शक्ति नहीं दिखा रही हैं।
उधर पार्थ चटर्जी ईडी के सामने अब जो बयान दे रहे हैं वह ममता सरकार और तृणमूल कांग्रेस की मुश्किलों में इजाफा कर सकते हैं। खुद को चारों ओर से घिरा हुआ पा कर उन्हें शायद अब भाजपा नेता और फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती की यह सलाह सही लगने लगी है कि बरामद रकम के बारे में सब कुछ सच बता देने से उनकी तकलीफें कम हो सकती हैं । ईडी के एक अधिकारी के अनुसार पार्थ चटर्जी ने पूछताछ में बताया है कि उन्होंने शिक्षकों की भर्ती के लिए न तो उन्होंने कभी किसी से न तो कुछ मांगा,न स्वीकार किया। उनकी दूसरों के द्वारा तैयार किए गए कागजातों पर हस्ताक्षर करने तक सीमित थी। दूसरों के द्वारा उगाही किए जाने वाले धन के वे संरक्षक मात्र थे। एकत्रित धनराशि में से कुछ हिस्सा पार्टी के उपयोग के लिए ले लिया गया था। पार्थ तो अब यहां तक कहने लगे हैं कि ईडी ने जो रकम अर्पिता मुखर्जी के घरों से बरामद की है वह तो पार्टी द्वारा उगाही किए गए धन का केवल एक हिस्सा है। पार्थ चटर्जी इस बयान से निश्चित रूप से तृणमूल कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि अब यह सवाल भी उठना स्वाभाविक है कि ईडी द्वारा बरामद रकम पार्टी द्वारा उगाही किए गए धन का एक हिस्सा मात्र है तो बाकी पैसा किन ठिकानों पर रखा गया है ।