कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की लड़ाई ने आसान कर दी भाजपा की राह

Updated on 22-04-2024 04:38 PM
कृष्णमोहन झा/
देश के 25 से अधिक भाजपा विरोधी दलों ने गत वर्ष जो इंडिया गठबंधन बनाया था उसमें यूं तो शुरू से ही मतभेद उजागर होने लगे थे परन्तु उस समय  यह संभावना भी व्यक्त की जा रही थी कि  लोकसभा चुनाव नजदीक आते आते गठबंधन के सारे घटक दलों को एकजुटता की अनिवार्यता महसूस  होने लगेगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि गठबंधन के कुछ दलों ने आपसी एकजुटता प्रदर्शित करने की भरसक कोशिश भी की परंतु पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुरू से ही इंडिया  गठबंधन को धता बताने में कभी कोई संकोच नहीं किया और  आश्चर्य की बात तो यह है कि  19  अप्रैल को मतदान की प्रक्रिया  शुरू हो जाने के बावजूद   यह सिलसिला थमने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण ममता बनर्जी का हाल में ही दिया गया वह बयान है जिसमें उन्होंने राज्य में कांग्रेस और साम्यवादी पार्टी पर भगवा पार्टी की परोक्ष मदद करने का आरोप लगाया है। गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से मात्र बेहरामपुर और   माल्दा की सीट  कांग्रेस पार्टी के लिए छोड़ने की पेशकश की थी जिसे कांग्रेस ने अपमानजनक मानते हुए ठुकरा दिया और कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समझौता कर लिया लेकिन यह भी इंडिया गठबंधन की परस्पर विरोधाभासी  प्रकृति का एक आश्चर्यजनक उदाहरण  है कि  वर्तमान लोकसभा चुनावों के लिए पश्चिम बंगाल में हाथ मिलाने वाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी केरल में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड रही हैं। ऐसे उदाहरण देश के अन्य राज्यों में भी देखने को मिल सकते हैं। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि इंडिया गठबंधन के इन विरोधाभासों ने लोकसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत से भाजपा की जीत सुनिश्चित कर दी है। वास्तविकता यह है कि इंडिया गठबंधन के कुछ बड़े घटक दल  अपने  वर्चस्व वाले राज्यों में जिस तरह से उनसे कम जनाधार वाले सहयोगी घटक दलों पर निशाना साध रहे हैं उससे उन राज्यों में भाजपा की  राह आसान होती जा रही  है। पश्चिम बंगाल में भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ‌ने कांग्रेस पार्टी के खिलाफ जो अभियान छेड़ रखा है उनसे भी यही संकेत मिल रहे हैं। उनके चुनावी भाषणों में  कांग्रेस पार्टी पर किए जाने वाले तीखे हमले यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि इंडिया गठबंधन से तृणमूल कांग्रेस का रिश्ता क्या अब केवल नाममात्र का बचा है । विगत दिनों मुर्शिदाबाद में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी मिलकर भाजपा की मदद कर रहे हैं। यहां कोई इंडिया गठबंधन नहीं है। ममता बनर्जी ने कहा " मैंने विपक्षी इंडिया गठबंधन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यहां तक कि विपक्षी गठबंधन का इंडिया नाम भी मैंने ही दिया था। परंतु पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और मार्क्सवादी पार्टी और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन बना लिया। यह एक साज़िश है।" यह पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस और मार्क्सवादी पार्टी के गठजोड़ पर निशाना साधा है। इसके पहले भी इस तरह के आरोप लगाती रही हैं। दूसरी ओर बेहरामपुर से कांग्रेस उम्मीदवार और 17 वीं लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी भी भ्रष्टाचार और बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर ममता बनर्जी की सरकार को कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका कभी नहीं छोड़ते। दरअसल समय समय पर की गई उनकी बयानबाजी के कारण ही तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच दूरियां बढ़ती रही हैं। पश्चिम बंगाल के पिछले विधानसभा चुनावों में भी अधीर रंजन चौधरी की पहल पर ही कांग्रेस ने मार्क्सवादी पार्टी के साथ‌  गंठजोड़ किया था जिसे तृणमूल कांग्रेस के हाथों इतनी गहरी शिकस्त का सामना करना पड़ा कि दोनों पार्टियों का खाता तक नहीं खुला।इन लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा हुआ है। इतना तो तय है कि इंडिया गठबंधन को ममता बनर्जी राज्य में थोड़ा सा भी महत्व नहीं दे रही हैं। वे राज्य में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहती हैं लेकिन राज्य में भाजपा कि बढ़ती ताकत उनके लिए चिंता का विषय बन गई है। उन्उहें  यह डर सताने लगा है कि उनकी सरकार के मंत्रियों‌ एवं तृणमूल कांग्रेस के अनेक वरिष्ठ नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और  संदेशखाली की घटनाए इन लोकसभा चुनावों में उनकी  उम्मीदों  पर  पानी फेर  सकती हैं।

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